लेखनी प्रतियोगिता -20-Mar-2022
मर्यादा के पालक को कब–तक आख़िर सब झुठलाओगे?
मन में रावण रखने वाले , राम कहांँ से तुम पाओगे?
प्यास अधर की गर होती तो, आंँसू से बुझ जाती लेकिन
प्यासा मेरा मन है फिर बोलो ,कैसे यह प्यास बुझाओगे?
नैतिकता से परे प्रेम भी , करना इक गुस्ताखी है तो....
जब आएगा नाम मेरा तब ,चेहरा तुम कहांँ छिपाओगे?
आज वेग है जिह्वा में तो ,जो बोलो बस वही कहूंँगा...
पर जब काया छोड़ चलूंँगा ,फिर किसको तुम तड़पाओगे?
एक तुम्हीं हो अंतर्मन में ,जन्मांतर तक हम कायल।
आंँखों से दूर भले जाओ , मन से कैसे जा पाओगे?
दीपक झा "रुद्रा"
Shrishti pandey
21-Mar-2022 10:44 AM
Very nice
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Punam verma
21-Mar-2022 08:53 AM
Bahut badhiya
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Abhinav ji
21-Mar-2022 08:05 AM
Very nice👍
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